कालसर्प योग का विचार करनेसे पहले राहू केतू का विचार करना आवश्यक है| राहू सर्प का मुख माना गया है| तो केतू को पुँछ मानी जाती है| इस दोग्रहोंकें कारण कालसर्प योग बनता है| जन्मकुंडली में यह दोनों ग्रहोंकें बीच शुभ ग्रह आ गये तो वह कालसर्प योग का चिन्ह होता है| हिरण्यकश्यपूकी पत्नि सिंहिकासे राहू का जन्म हुआ है| समुद्रमंथनसे प्राप्त हुआ अमृत प्राप्त करने के लिए राहू देव समुहमे जाकर बैठे| वह अमृत प्राशनकरनेहीवाला था तो चंद्र सूर्य ने मोहिनी को इशारा किया|मोहिनी रूप विष्णूने तत्काल राहू का शिरच्छेद किया| अत: उसके शरीरके पूर्व भाग को राहूऔर उत्तर भाग को केतू कहने लगे| तभी नवग्रह में उन्हे स्थान प्राप्त हुआ|
राहू के वजहसे ही कालसर्प योग बन सकता है|वैदिक कर्मकांड में राहू को आदि देवता काल माना गया है, और प्रत्याधिदेवता सर्प को माना गया है|इसलिए राहू दूषित होनेसे कालसर्प योग बनता है| राहू यदी शुभास्थिती में हो तो भाग्यदायक और पराक्रमी होता है| उनका प्रभुत्व मंत्र तंत्र अघोरीविद्याओके साथ होता है| यदी राहू दुषित हो तो स्मृतिनाश, अपकिर्ती पिशाच्चबाधा संतति को कष्ट अपाय करता है|अनेक कार्योंमे विलंब अथवासफलता मिल सकती है| हर कार्य आसान होने के लिए वैदिक कालसर्प योग शांति विधान करना चाहिए|
महत्वपुर्ण सुचना :
अनंत कालसर्प योग
जब लग्न में राहु और सप्तम भाव में केतु हो और उनके बीच समस्त अन्य ग्रह इनके मध्या मे हो तो अनंत कालसर्प योग बनता है । इस अनंत कालसर्प योग के कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती । वह सदैव अशान्त क्षुब्ध परेशान तथा अस्िथर रहता है: बुध्दिहीन हो जता है। मास्ितक संबंधी रोग भी परेशानी पैदा करते है।
कुलिक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के व्दितीय भाव में राहु और अष्टम भाव में केतू हो तथा समस्त उनके बीच हों, तो यह योग कुलिक कालसर्प योंग कहलाता है।
वासुकि कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग वासुकि कालसर्प योग कहलाता है।
शंखपाल कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के चौथे भाव में राहु और दसवे भाव में केतु हो और उनके बीच सारे ग्रह हों तो यह योग शंखपाल कालसर्प योग कहलाता है।
पद्म कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु और ग्याहरहवें भाव में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच हों तो यह योग पद्म कालसर्प योग कहलाता है।
महापद्म कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच कैद हों तो यह योग महापद्म कालसर्प योग कहलाता है।
तक्षक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तथा बाकी के सारे इनकी कैद मे हों तो इनसे बनने वाले योग को तक्षक कालसर्प योग कहते है।
कर्कोटक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के अष्टम भाव में राहु और दुसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को कर्कोटक कालसर्प योग कहते है।
शंखनाद कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते है।
पातक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के दसवें भाव में राहु और चौथे भाव में केतु हो और सभी सातों ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो यह पातक कालसर्प योग कहलाता है।
विशाधर कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के ग्याहरहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते है।
शेषनाग कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु और छठे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते है।