अगर किसी जातक के लग्न कुंडली में प्रथम , चतुर्थ , सप्तम, अष्टम वा द्वादश भाव में मंगल हो तो और कई कारणों से मंगल दोष भंग नहीं होता तो उसे मंगल शांती करना आवश्यक है|
अगर किसी जातक के लग्न कुंडली के बारह भावों में राहू या केतू के साथ मंगल बैठा हो या फिर राहू केतू की संपूर्ण दृष्टी मंगल के उपर पड रही हो तो उसे अंगारा दोष लगता है|
अगर किसी जातक के बारह भाव में राहू और गुरु एकसाथ बैठे हो या राहू की संपूर्ण दृष्टी पड़ रही हो तो उसे चांडाल दोष लगता है|
अगर किसी जातक के लग्न कुंडली के बारह भावों में से किसी भी भाव में रवी और शनी एकसाथ बैठे हो या फिर शनी की संपूर्ण दृष्टी रवी के उपर पड रही हो तो उसे विष दोष लगता है|
अगर किसी जातक के लग्न कुंडली के बारह भावों में से किसी भी भाव में राहू केतू के साथ सूर्य बैठें हो या राहू केतू की संपूर्ण दृष्टी रवी के उपर पड़ रही हो तो इस स्थितीं में सूर्य ग्रहण दोष बनता है|
लग्न कुंडली के किसी भी भाव में राहू केतू के साथ चंद्र बैठें हो या राहू केतू के संपूर्ण दृष्टी चंद्र के उपर पड़ रही हो तो इस स्थिती में चंद्र ग्रहण दोष बनता है|
अगर किसी जातक के लग्न कुंडली के किसी भी भाव में शनी और मंगल एकसाथ बैठें हो या शनी की संपूर्ण दृष्टी मंगल के उपर पड़ रही हो तो उसे संघर्ष दोष लगता है |
किसी भी जातक के लग्न कुंडली के किसी भी भाव में रवी – शुक्र या बुध – मंगल या बुध – चंद्र या गुरु – शुक्र या शुक्र – रवी – चंद्र तो युती दोष लगता है|
किसी जातक के जन्म कुंडली में शनी की महादशा चालू हो या शनी साढ़ेसाती (अढइया) चालू हो तो उसे अनेक प्रकार के दोष जैसे की बिनाकरण कलंक लगना, उन्नतीं में रूकावट आना, अशांती होना, घर में कलह उत्त्पन्न होना, व्यापार में रुकावट , अपघात इत्यादी., जीवन में उथल पुथल होना इसके लक्षण है अत: इस स्थिती में उन्हें शनी महापूजा , जाप अनुष्ठान करवाना आवश्यक है|
अगर किसी जातक के जन्म कुंडली में राहू या केतू कि महादशा चालू हो तो उस व्यक्ती को अनेक प्रकार के परेशानीयों का सामना करना पड़ता है| जैसे की नोकरी संबंधी रुकावट, विवाह संबंधी रूकावट, पारिवारिक कलह, कोर्ट कचेहरी के चक्कर , पुलिस केस, जमीन जायदाद संबंधी अड़चन, चोरी का भय, क्लेश, चिंता , अॅक्सिडंट, संतती संबंधी अड़चन, विवाह में गलत व्यक्ति के साथ संबंध होना, प्रेम विवाह इत्यादी.
अगर किसी जातक का विवाह या व्रतबंध (जनेउ) निश्चित हो गया है, तो उसे गुरु का बल प्राप्त करने के लिए अथवा जातक के जन्म कुंडली, जन्म राशी के हिसाब से गुरु यदी ४,८,१२ स्थान में या अनिष्ट हो रहा हो तो गुरु शांती आवश्यक है|
अगर किसी लडके या लड़की के कुंडली में मृत्यु योग हो या महादोष की निर्मिती हो रही हो और दोनों का विवाह करना अनिवार्य हो तो ऐसी स्थिती में दोष का नाश करने के लिए कुंभ विवाह आवश्यक है|
कोई भी नये काम की शुरुवात करने से पहले उदहारण व्यापार / व्यवसाय , शादी –ब्याह , गृह प्रवेश , इत्यादी नये काम के शुरुवात के पहले निर्विघ्नता के प्राप्ति के लिए नवग्रह शांती आवश्यक है|
अनेक संस्कृती खगोलशास्त्रीय घटनाओंको महत्त्व देता है| उनमेसे भारतीय, चीनी आणि मयान संस्कृतियों ने दिव्य निरीक्षणसे ऐहिक घटनांओंका भाकित करने के लिए कुछ जटिल प्रणालीओं को विकसित किया है|पश्चिम संस्कृतीमें ज्योतिष सर्वसाधारण पत्रिका प्रणाली में समाविष्टीत है| व्यक्ती के पत्रिका में जन्म के समय चंद्र, सूर्य और अन्य दिव्य वस्तूओंके स्थानोसे व्यक्तित्व के पैलू का और जीवन में भविष्यमें क्या होने वाला है इसका भाकित किया जाता है|अधिकांश पेशेवर ज्योतिषी इस तरह के तंत्र का प्रयोग करतें है| संपूर्ण इतिहास में ज्योतिष विद्या को बुध्दिमान परंपरा मन जाता है|